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मेरी बात- दोस्ती की

  छुटपन की दोस्ती भी क्या थी। खेल कूद ही  परम सत्य लगता था। दोस्ती में स्नेह और हमेशा साथ साथ रहने का  मन करता। ऐसा सभी बच्चों को महसूस होता। मुझे  भी अपनी पड़ोस की सहेलियों के साथ घर घर खेलना  बख़ूबी याद है। जब खाना खाने के लिए मम्मी बुलाती, तो मन में आता कि सहेलियों के साथ ही खाना क्यु नहीं खा सकती? कई बार खेल खेल में बात बात में बात निकल जाती। यही कि हम अगली छुट्टियों में dance का prog रखते हैं। कोई कहता कि मुझे किताब पढ़ना  अच्छा लगता है, कैसा हो कि हम सब मिलकर कोई library चलें। जब लंबी छुट्टियाँ मिलती तब तो सुबह से शाम तक के back to back कई प्रकार  की  मौज मस्ती  की बातें, खेल, भागा दौड़ी चलती रहती। ऐसा दोस्ताना उस समय कई जन्मों का साथ से कम नहीं लगता था। तू तड़ाक करना, धक्का-मुक्की, जीभ चीड़ाना और ऐसी अन्य चीजें दोस्ती की catagory में हमेशा से रही हैं।   हमारे बचपन में गाली गलोच की भाषा आम  नहीं थी। जैसे जैसे  उम्र बढ़ी दोस्त बदले। कुछ आए, कुछ गए। कुछ पता ही नहीं चला कि ये कैसे हुआ। मेल मिलाप का तरीका भी कुछ कुछ बद...

Blinkit का कमाल

  आधुनिक दुनिया की तेज रफ्तार से कोइ नहीं बच सका है।  इतनी जल्दी तो उम्र भी  उछाल नहीं लेती, जितनी  जल्दी कोई नया हैरान कर देने वाला यंत्र या साधन पेश हो जाता है। साधन और सुविधाओं का तो यह  आलम  है कि कम से कम समय में ज्यादा से ज्यादा काम हो रहा है। कुछ ही मिनटों में घर बैठे मनचाहा सामान मिल जाना,जादू सा लगता है। Delivery Apps की बात कर रही हूँ । एक लम्बी सी सूचि तैयार कर, टकाटक करो पैसे जमा। कुछ दिन पहले मुझे एक नामी Delivery App, Blinkit Store को देखने  का मौका मिला। तकनीक का कमाल देख मैं तो दंग रह गई। हर तरफ विभिन्न प्रकार की चीजें जमी जमाई लम्बी कतार में नजर आईं। सैकड़ों तरह के सामान और पचासों कर्मचारी। सभी इतने व्यस्त थे कि बैठने का कोइ प्रश्न नहीं। वैसे बैठने की कोई जगह भी नहीं थी। हर कर्मचारी किसी ताजा Computer game के भागते दौड़ते प्यादों  के समान लग रहा था। समय के विरूद्ध एक दौड़ जैसे। सच है कि पैसे कमाने के लिए दुनिया की सबसे लम्बी दौड़ भी लगानी पड़ सकती है। Blinkit में तो सभी कर्मचारी दिन रात GPS जैसा किरदार निभाने हैं। ऑर्डर म...

Tips and tables

  The books that I read in my college and school days offered knowledge. We could dive deep into the subject of matter. No shortcuts ever. Even the maths and physics calculations, formulations were too long yet they followed systematic routes. Nowadays while trying to acquire an ocean of information through internet, we face the tiny streams of shortcuts. The easy, quick pointers, tempting words and pictures, glamorous tips and magical formulas that are addictive. Good old books have lost their legitimate space. Making genuine efforts to revive the time that our books deserve is the call for the day. Let the knowledge seep in slowly and steadily through the folds of paper that smell like earth.

भाषा का जश्न

भाषा को चाहिए शुभकामनाएं भरपूर, जब  बोली ही हो जाए काम चलाऊ, जब नन्ही सी  emoji कह  दे सारे दिल का हाल, जब हाथ  की अंगुलियां ही जता दें खुशी, गम और गुबार, सच है भाषा डोल रही, हांफ रही, बचा रही अपनी पहचान, जब कहने को बहुत कुछ नहीं, क्यूँ करे कोइ पढ़ने, सुनने का भी प्रयास, हाँ, वो भाषा ही थी जो  करा देती  सबका मेल मिलाप, जब आया दौर दूरीयो का, सिकुड़ गए बोल और घट गई शब्दों की कतार।

FAMILY

  Facebook - Instagram वाली family हो या mummy papa, चाचा चाची, भाई बहन वाली, Connected रहना जरूरी है। दूर हो या पास, कोई फर्क़ नहीं,  बस दिल तक का रास्ता मिलना जरूरी है। जब दिल में घर करना हो तो कुछ  लमहा साथ बिताना भी जरूरी है। रिश्तों की बुनियाद जब password से बन जाए, फिर कभी Forgot password की तलवार ही ना लटक जाए। हम कभी मिले  नहीं,  but we are friends, वो मुझे  जानते नहीं,  but I follow him. Facebook का Add Friend और Insta का follow बटन ,जोड़ देता वो तार , जहां ना मिला  दिल, ना बीता लमहा, एक list बड़ती रही, बड़ती रही। मम्मी पापा,  दीदी  भैया की प्यार- मोहब्बत और अपनेपन की गर्माहट, सेक लेती है नए पुराने रिश्ते सभी, Facebook -Instagram कैसे  कर पाएगा इस गरमाहट की भरपाई ? अब तो सब हैं, All cool and chill भाई। 

शब्द बेमिसाल

  शब्द हैं बेमिसाल। बिगड़ी को बनाना और बनती को बिगाड़ना , कोई इनसे सीखे । फ़ितरत है,  बहते रहने की, पर बांध बनाना भी कोई इनसे सीखे । शब्द हैं बेमिसाल। प्यार का इजहार हो या नफरत का बम- गोले , कितना मीठा,  कितना कड़वा, चख- चख कर, हमने बोलना सीखा। दिल-दिमाग का तालमेल हो, जब मुँह से निकले शब्द, संतुलन के बोझ तले, दबी हुई कोई नब्ज । सोच कर भी दिन - रात, ना मिले  सही शब्द, चुप्पी का घोल बनाकर पी जाना ही बेहतर। मिजाज का आदान-प्रदान करते हैं शब्द, बोलिये सम्भालकर, न जाने कब,कौन जाए  बिगड़। शब्दों की भीड़ में ढूंढ लीजिए एहसास, कलम से सजी हो कहानी या उपन्यास। 

संकल्प

  भूल न जायें संकल्प, जो है दृढ़, परिस्थिति की हलचल, है निश्चित , डरना , हिचकना, तड़पना, है एक थैली में, ढोना चाहो , या पटकना, है चुनाव अपने पाले में। संकल्प की स्याही गहराती जाए, जब बार बार गिरना,  फिर उठ कर संभालना, फितरत ही  बन जाए। भूल न जायें संकल्प,  जो है दृढ़, परिस्थिति की हलचल, है निश्चित , न छोटा, न बड़ा , अहम है नियत, नेकी व कर्म के मिश्रण की फुहार, कर दे आसान हर संकल्प। भूल न जायें वो  संकल्प, जो है दृढ़, परिस्थिति की हलचल, है निश्चित , आज भी , कल भी, विचारों के रस का लेकर अर्क, बुनै नए संकल्प ।