शब्द बेमिसाल
शब्द हैं बेमिसाल। बिगड़ी को बनाना और बनती को बिगाड़ना , कोई इनसे सीखे । फ़ितरत है, बहते रहने की, पर बांध बनाना भी कोई इनसे सीखे । शब्द हैं बेमिसाल। प्यार का इजहार हो या नफरत का बम- गोले , कितना मीठा, कितना कड़वा, चख- चख कर, हमने बोलना सीखा। दिल-दिमाग का तालमेल हो, जब मुँह से निकले शब्द, संतुलन के बोझ तले, दबी हुई कोई नब्ज । सोच कर भी दिन - रात, ना मिले सही शब्द, चुप्पी का घोल बनाकर पी जाना ही बेहतर। मिजाज का आदान-प्रदान करते हैं शब्द, बोलिये सम्भालकर, न जाने कब,कौन जाए बिगड़। शब्दों की भीड़ में ढूंढ लीजिए एहसास, कलम से सजी हो कहानी या उपन्यास।